मैं काला हूँ,
निशब्द भावना का प्रतीक
कभी खिलखिलाते बच्चों का काला टिका,
तो कभी श्रृंगार का काला काजल।
मैं काला हूँ,
जैसे हजरत के काले कपडे़,
जैसे वेदों के काले अक्षर
और जैसे पूजा के काले पत्थर।
मैं काला हूँ,
गहरे ब्रह्मांड का रंग मुझसा है,
चमकते तारों का मकान भी मैं हूँ
और तुम्हारे अंतर्मन का अथाह समुंदर भी।
मैं काला हूँ,
कला भी मेरी पहचान है,
कभी रंगरेज के हाथों पे चढा
तो कभी कुम्हार की काली मिट्टी का दिया।
हाँ मैं काला हूँ,
निशब्द भावना का प्रतीक।
Ravi is a Craft Designer currently based in Jaipur. He works with families who follow traditional lifestyle and help them to regenerate the indigenous craft forms they practice. He is keen to learn about different culture and evolve his understanding of traditional crafts. Love to Express himself and his experience in form of writing. As a heritage enthusiast, he believes in sharing indigenous knowledge and follows the motto ‘SARVE BHAVANTU SUKHINAH’